कठपुतलियां - Dr. Srikant Pandey

Wednesday, 9 January 2019

कठपुतलियां














कठपुतलियों का खेल देखते - देखते
जाने क्या कैसे हुआ
कि खुद मैं एक कठपुतली बन गया।

देखता हूं कि मेरी पीठ भी
किसी धागे से बंधी है जो दिखाई नहीं पड़ता
और अपनी अंगुलियों पर
नचा रहा है कोई मुझे।

देखता हूं कि मेरे आस-पास का हर शख्स
मेरे देखते ही देखते
एक कठपुतली में बदल रहा है।

देखता हूं कि मैं अचानक घिर गया हूं
अस्थि - मज्जा रहित कठपुतलियों से।
देखता हूं कि
हम स्वांग रचते
एक कठपुतली घर
एक कठपुतली मुहल्ले और
एक कठपुतली समाज में
कैद होकर रह गए हैं।

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